लेखनी कविता - आकाशगंगा - बालस्वरूप राही

158 Part

48 times read

0 Liked

आकाशगंगा / बालस्वरूप राही गंगा एक यहाँ बहती है, एक वहाँ आकाश में। धरती की गंगा है निर्मल, शर्बत से मीठा इसका जल, हर प्यासे की प्यास बुझाती, भारत का इतिहास ...

Chapter

×